प्रकृति क्या है
प्रकृति भगवान का दिए जाने वाला बहुत ही अनमोल उपहार है प्रकृति को भगवान ने इस प्रकार से चित्रित किया है की इसकी कोइ भी मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता है |
भगवान ने प्रकृति के निर्माण में उन सभी चीजो को सम्मलित किया है जो मानव के जीवन में वहुत ही रोमांचकारी होती है या आज की मानव जब भी उसे देखता है तो उसकी आँखे खुली की खुली ही रह जाती है प्रकृति में भगवान ने हर वस्तु को वहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया है |
भगवान ने प्रकृति के निर्माण के समय कही पर ऊचें ऊचे पहाड़ तो कहि पर बहुत गहरी झिले तो कहि पर रेत के मैदान तो कहि पर घास के मैदान बनाये है यदि कहा जाये तो प्रकृति को बनाते समय भगवान ने प्रत्येक बहुत ही सोच समझ कर प्रत्येक वस्तु को उसकी आवश्कता के अनुरूप ही रखा है |
प्रकृति ने मानव को प्रत्येक चीज पर बराबर का अधिकार दिया है प्रकृति में पेड ,पौधे ही नही बल्कि जीवो को भी बहुत ही प्रकृति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग बनाया है जीवो में यदि मांसहारी जीव भी है तो घास खाने बाले जीव भी है प्रकृति का संतुलन बनाये रखने के लिए जंगली जीव एक दुसरे का शिकार करते है यदि धरती पर घास खाने वाले जीवो की संख्या बढ़ जाती है तो प्रथ्वी पर मानव सभ्यता की लिए ये बहुत ही कठिन समय होगा जिससे 02 की मात्रा में कमी आजाती है इसी लिए मांसहारी जीवो का भी प्रक्रति के संतुलन में वहुत ही बड़ा योगदान रहता है |
प्रकृति में बहुत ही मनोरम द्रश्य छुपा हुआ है ऊँची- ऊंची पहाड़ियों से गिरता हुआ पानी का दृश्य मन को बहुत ही सुख का अनुभव करता है प्रकृति से अकेले -अकेले बाते करने में जो आंनद प्राप्त होता है वो कहि पर प्राप्त नही होता है प्रकृति के कण-कण में सुख की ऐसी अनुभूति होती है मानो की मनुष्य को धरती पर जीते जी स्वर्ग की प्राप्ति हो गयी है |
प्रकृति के नियम
जी हाँ दोस्तों प्रकृति के भी अपने नियम होते है
मनुष्य को प्रक्रति के नियमो को ध्यान में रखते हुए ही अपने जीवन के सभी कार्यो को सम्पन्न करना चाहिए |प्रकृति को यु तो सब लोग बहुत ही अच्छी तरह समझ ते है प्रक्रति का मतलब हमारे आस पास के वातावरण से होता है जिसमे हर चीज एक निश्चित मात्रा में होती है चाहे वह वातावरण में पाये जाने वाली गैसे ही क्यों न हो |
प्रकृति अपने अंदर ऐसे अनेको रहस्यों को समाये हुए है या प्रक्रति के अंदर ऐसे अनेक रहस्य होती है जिन्हें समझना मानव की पहुच से बहार की बात है |
भारत के साहित्य करो का सम्बन्ध प्रक्रति से बहुत ही गहरा है उन्होंने प्रक्रति के सार को समझने के लिए अपने जीवन का काफी समय जंगली जानवरों व पेड़ – पौधो क बिच रहकर ही बिताया है उन्होंने जंगल ने रहकर ही ऐसी जडीबुटीयो को खोज कर दी थी जिनकी कोइ काठ नही है प्रक्रति में उपस्थित हर एक वृक्ष व घास एक दवाई का कार्य करती है इनके बारे में लिखको ने प्राचीन वेदों में विस्तार से लिखा है |
परन्तु आज के समय में किसी के पास इतना समय नही है की वो अपने पुराने ग्रंथो को पढ़े आज से हजारो साल पहले उन रोगों का उपचार की विधि खोज ली गयी थी जिनका आज भी सम्पूर्ण उपचार नही है ये सब बाते वेदों में लिखी गयी है |
मानव द्वारा प्रकृति के नियमो के साथ खिलबाड
मनुष्य अपनी भाग दौड़ की जिन्दगी में अपने बारे में भी नहीं सोचता है तो वह प्रक्रति के बारे में क्या सोचे गा |मनुष्य अपने लाभ के लिए प्रकृति के नियमो को ताक पर रखकर अपनी जरूरत की चीजो को विकशित कर रहा है |या कहा जा सकता ही की मनुष्य अपनी दमन करी निति से प्रकृति पर शासन करना चाहता है |
जैसे – मानव अपनी आवश्यकता के लिय जीवो व पेड -पौधो दोनों का ही सर्व नाश कर रहा है जिससे प्रकृति के वनाये हुए नियमो का उलघ्घन हो रहा है यह उलघ्घन किसी छोटी समस्या को नही बल्कि बहुत ही बड़ी समस्या को जन्म दे रहा है जो मानव सभ्यता के लिय बहुत ही बड़ा खतरा साबित हो सकता है |
मानव ने प्रकृति को एक ऐसी वस्तु समझ लिया है की वह उसे जब चाहे इस्तमाल कर सकता है और जब चाहे उसे वेकर समझकर एक तरफ फेक सकता है आज के समय में मानव की आयु का कम होने का मुख्य कारण प्रकृति को न समझना ही है