लालची को मिली सजा

लालची को मिली सजा

लालची को मिली सजा
दोस्तों आज हम लाये हैं आपके लिए एक बहुत ही रोमांचक कहानी लेकर और इससे आपको बहुत अच्छी सीख मिलेगी और कहानी पढ़ने के बाद हम उसके बारे में बताएंगे तो चलते हैं, अपनी कहानी की तरफ
बात काफी पुरानी है एक लोकेंद्र सिंह नाम का व्यक्ति, एक गांव में रहा करता था और वह बहुत ही लालची था, उसके पास पैसा भी अच्छा खासा था परंतु उसकी जो लालच की हद थी वह बहुत ही ज्यादा बड़ी हुई थी, यहां तक कि वह अपने बच्चों के लिए भी हर चीज बिल्कुल थोड़ी थोड़ी सी करता था जैसे कि बच्चों को कुछ दिलाना हो तो थोड़ी सी चीज दिला दी यदि अमरुद दिलाना हो तो एक अमरुद दिला देता था और चारों बच्चों में उस अमरुद को काटकर बांट देता था, वह अपना ₹1 भी किसी को नहीं देता था और किसी पर यदि उसका ₹1 हो तो उसे छोड़ता नहीं था,
एक बार उसके लड़के को स्कूल के लिए फीस जमा करने थी उस टाइम एक रुपए, पचास पैसा, ढाई रुपए इस तरीके से फीस जाया करती थी, और लोकेंद्र सिंह के लड़के को आज फीस भरनी थी वरना उसका नाम स्कूल से कट जाता लोकेंद्र सिंह ने कहा बेटा तुम चलो मैं आ रहा हूं फीस लेकर और यह सुनकर बेटा स्कूल चला गया स्कूल जाकर लड़का इंतजार कर रहा था स्कूल के प्रिंसिपल ने लड़के को बाहर खड़ा रखा प्रिंसिपल ने कहा कि जब तक तुम्हारे पापा फीस नहीं जमा करेंगे तब तक तुम्हें अंदर नहीं लिया जाएगा थोड़ी देर में लोकेंद्र सिंह वहां पहुंच गए और उन्होंने प्रिंसिपल से पूछा कितनी फीस है, प्रिंसिपल ने कहा आपके चारों लड़कों की फीस थी 48 रुपए है 48 रुपए सुन कर लोकेंद्र बेहोश हो गए और उन्हे जैसे तैसे होश मे लाया गया, होश मे आकर लोकेंद्र ने कहा इतनी फीस प्रिंसिपल ने कहा आपके चारों लड़कों की फीस ₹48 है क्योंकि बाकियों की फीस भी रह गई है आपको सारी जमा करनी होगी लोकेंद्र सिंह ने जैसे तैसे करके ₹48 फीस के जमा कर दिए और वहां से वापस आए वापस आकर दोपहर से शाम तक एक कमरे में बंद रहे अब उनकी पत्नी आई और उनकी पत्नी ने कहा अजी खाना खा लीजिए लोकेंद्र सिंह ने अंदर से आवाज दी मैं 1 महीने तक खाना नहीं खाऊंगा उनकी पत्नी घबरा गई उनकी पत्नी ने कहा क्या हुआ सब ठीक है ना लोकेंद्र सिंह बाहर आए और उन्होंने कहा कि आज मेरे ₹48 खर्च हो गए हैं और इनकी भरपाई एक हफ्ते में होगी इसलिए मैं 1 महीने तक खाना नहीं खाऊंगा इतना सुनकर उनकी पत्नी अचंभे में रह गई और वहां से चली गई,
लोकेंद्र सिंह रोजाना लैट्रिन करने के लिए खेतों पर जाया करते थे रास्ते में आते वक्त एक कीकड़ का पेड़ पड़ता था, जहां पर वह बोतल में बचा हुआ पानी डालते थे, लगभग 1 साल हो गए थे लगातार उस कीकड़ के पेड़ पर पानी डालते डालते हैं लोकेंद्र सिंह भले ही कंजूस है परंतु उनके मन में हमेशा श्रद्धा भाव रहता था वह भगवान के प्रति बड़े आस्थावान थे उन्होंने मंदिर में कई बार कथा, भजन भी कराएं एक दिन जब लोकेंद्र सिंह कुछ सामान लेने शहर की तरफ गए और जब सामान लेकर वहां से लौट रहे थे तो उनकी रास्ते में एक गाड़ी वाले से टक्कर हो गई और उनके पैर में चोट आ गई लोकेंद्र सिंह को वहाँ से जैसे तैसे करके लोगों ने उनके घर पहुंचाया, डॉक्टर ने लोकेंद्र सिंह के पैर में प्लास्टर कर दिया, और आराम करने को कहा,
परंतु लोकेंद्र सिंह रोजाना सुबह खेतों पर जाया करते थे और वहां पर लैट्रिन करके आया करते थे और जिस बोतल मे पानी ले जाते थे उसमें पानी बचाकर वापस ला कर उस कीकड़ के पेड़ पर डाला करते थे जो रास्ते में पड़ता था , लगभग कीकड़ के पेड़ पर पानी डालते डालते दो-तीन साल हो चुके थे,
चाहे बरसात हो ठंड हो या कोई भी दिक्कत हो परंतु लोकेंद्र सिंह सुबह के समय खेतों पर जाया करते थे और उस कीकड़ के पेड़ पर पानी जरूर डाला करते थे 1 दिन लगभग सुबह के 3:00 बजे हुए थे लोकेंद्र सिंह को बहुत तेज प्रेशर आ रहा था तो लोकेंद्र सिंह ने बोतल में पानी भरा और खेतों पर चल दिए लोकेंद्र सिंह जब खेतों से वापस आ रहे थे उन्होंने उसी प्रक्रिया से कीकर के पेड़ पर पानी डाला और और वहां से आगे की तरफ चल दिए लगभग सुबह के 3:30 बजे हुए थे जब लोकेंद्र सिंह कीकड के पेड पर पानी डाल कर आगे चले तो उन्हें कीकर के पेड़ से आवाज,आई लोकेंद्र कहां जा रहे हो लोकेंद्र सिंह को आवाज सुनाई दी उन्होंने इधर उधर देखा उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया लोकेंद्र सिंह, मैं चलता हूं लोकेंद्र सिंह ने एक कदम और आगे बढ़ाया तो फिर दोबारा से आवाज आई लोकेंद्र सिंह कहां जा रहे हो, लोकेंद्र सिंह को लगा कि मेरा वहम है, कोई मुझे आवाज दे रहा है ,
लोकेंद्र सिंह पीछे मुड़े और कीकर के पेड़ की तरफ चल दिए और वहां पहुंच कर उन्हें चारों तरफ देखा लोकेंद्र सिंह को कुछ भी दिखाई नहीं दिया लोकेंद्र सिंह सोचने लगे कि आवाज कहां से आई लोकेंद्र सिंह कीकर के पेड़ के नीचे खड़े थे थोड़ी देर बाद लोकेंद्र सिंह को फिर आवाज आई लोकेंद्र सिंह को एहसास हुआ कि वह आवाज कीकड के पेड़ से आ रही है डर की वजह से वो तुरंत कीकर के पेड़ से दूर हो गए और उन्होंने पूछा पेड़ क्या तुम बोल रहे हो उधर कीकर के पेड़ से आवाज आई हां मैं ही बात कर रहा हूं लोकेंद्र सिंह घबरा गए और बहुत ज्यादा डर गए परंतु कीकर के पेड़ से आवाज आई लोकेंद्र डरो मत, डरने की कोई जरूरत नहीं है लोकेंद्र सिंह कहने लगे आप कौन हो फिर पेड़ ने बताया कि मैं पेड़ हूं और तुम लगभग 4 साल से मुझे लगातार पानी पिला रहे हो और तुम्हारे मन में पानी पिलाते वक्त भी कोई लालच नहीं था, इसलिए मैं प्रसन्न हो गया और आज तुमसे बात करने के लिए आया हूं लोकेंद्र सिंह ने कहा की पैड तो कभी बोलते नहीं पेड़ ने कहा ऐसा नहीं है पेड़ बोलते हैं परंतु किसी किसी से ही बात किया करते हैं और वह भी अच्छा और सच्चा इंसान होना चाहिए तभी पेड़ उससे बात करते हैं इतना सुनकर लोकेंद्र सिंह खुश हो गए और लोकेंद्र ने पेड़ से कहा क्या मैं भी अच्छा इंसान हूं पेड़ ने कहा हां तुम सच्चे इंसान हो और तुम मुझसे कुछ भी मांग सकते हो मैं तुम्हारी कोई भी एक इच्छा पूरी कर सकता हूं
इतना सुनकर लोकेंद्र सिंह के मन में लालच आ गया लोकेंद्र सिंह ने सोचा कुछ अच्छा मांगता हूं , परंतु अचानक उसके पेट में बहुत जोर से भूख लगने लगी और उसका मन कुछ खाने के लिए हुआ परंतु आसपास कुछ भी नहीं था और इतनी तेज भूख लगने लगी कि उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी उधर दूसरी तरफ पेड़ बोल रहा था बताओ लोकेंद्र तुम्हें क्या चाहिए लोकेंद्र सिंह ने सोचा कि मुझे भूख लग रही है बाकी सब कुछ तो है मेरे पास कुछ खाने के लिए मांग लेता हूं घर का खर्चा भी बच जाएगा लोकेंद्र सिंह ने पेड़ से कहा कि मुझे खीर चाहिए पेड़ ने कहा ठीक है मैं तुम्हें खीर देता हूं लोकेंद्र ने कहा खीर गरम देना पेड़ ने कहा ठीक है तुरंत पेड़ से खीर से भरा हुआ भगोना आया उसमें खीर उबल रही थी और खीर के दाने ऊपर उछल रहे थे.
लोकेंद्र सिंह ने कहा यह तो बहुत गर्म है पेड़ ने कहा अब तो यह तुमको खानी पड़ेगी वरना अनर्थ हो जाएगा लोकेंद्र सिंह ने कहा ठीक है मैं इसे खा लूंगा पेड़ में कहा नहीं यह तो आपको अभी खानी पड़ेगी लोकेंद्र सिंह ने बर्तन एक पत्ते की मदद से उठा लिया और जैसे ही उस बर्तन को उठाया और उठाकर मुंह के पास लाये तो उबलता हुआ एक दाना उसकी आंखों में गिर गया और उसने खीर फेंक दी वहां से भाग गया उसकी एक आंख मैं गर्म दाना गिर चुका था और घर पहुंचते-पहुंचते लोकेंद्र सिंह बेहोश हो गया था जब लोकेंद्र की आंख खुली तो उसने अपने आप को एक अस्पताल में पाया और उसकी एक आंख बंद थी उसने पूछा कि मैं कहां हूं और मैं यहाँ क्या कर रहा हूं लोकेंद्र सिंह की घरवाली ने कहा कि आप कल सुबह जब भाग कर आए थे तब आपकी आंखों से खून निकल रहा था और आप बेहोश हो गए थे हम आप को अस्पताल लेकर आए हैं लोकेंद्र सिंह ने पूछा और मेरी एक आंख से क्यों दिखाई नहीं दे रहा लोकेंद्र सिंह की पत्नी ने कहा आपकी एक आंख खराब हो गई है अब बस एक ही आंख बची हुई है लोकेंद्र सिंह ने अभी तक यह बात किसी को नहीं बताई थी परंतु जब लोकेंद्र सिंह अस्पताल से घर आए तो उन्होंने वह घटना अपनी पत्नी को बताई और धीरे-धीरे यह बात पूरे गांव को पता लग गई .
लोकेंद्र सिंह की पत्नी ने लोकेंद्र सिंह से कहा की यह सजा आपको आपके लालच की वजह से मिली है यदि आप उस दिन कुछ अच्छा मांगते तो शायद आपको यह दिन ना देखना पड़ता परंतु आप के लालच ने आप को अंधा बना दिया है इसलिए आज आप एक आंख से अंधे हो गए हो अगर यही लालच आप हमेशा करते रहे तो धीरे-धीरे आप बर्बाद हो जाओगे आज से लालच करना बिल्कुल बंद कर दीजिए और उस कीकड के पेड़ पर फिर पानी डालना शुरू कर दीजिए क्या पता भविष्य में कुछ ऐसा हो आपको उससे कुछ फायदा हो जाए और आपकी आंख ठीक हो सकती है, अब लोकेंद्र सिंह रोजाना उस कीकड़ के पेड़ पर पानी डालते है और आज लगभग 40 साल हो चुके हैं परंतु दोबारा उस पेड़ से कोई आवाज नहीं आई है और अब लोकेंद्र सिंह जी बुजुर्ग हो चुके हैं और उन्होंने अपने लालच की आदत भी छोड़ दी है

तो दोस्तों हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है की हमें कभी लालच नहीं करना चाहिए क्युकी लालच करने से बना बनाया काम भी बिगड़ जाता है, तो दोस्तों चलते हैं फिर मिलेंगे अपनी अगली कहानी के साथ
धन्यवाद

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